Sindhu sabhyata in hindi | History of indus valley civilization
सिन्धु घाटी सभ्यता विस्तार से
रेडियोंकार्बन c^14 जैसी नवीन विशलेषण पद्धति के द्वारा सिन्धु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2400 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व मानी गयी है।
Sindhu Sabhyta की खोज रायबहादुर दयाराम शाहनी के की।
सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल दाश्क नदी के किनारे सुतकागंडोर ;बलूचिस्तानद्ध में स्थित है तथा पूर्वी पुरास्थल हिण्डन नदी के किनारे आलमगीरपुर ;जिला मेरठ,उत्तरप्रदेशद्ध में स्थित है।
उत्तरी पुरास्थल चिनाब नदी के तट पर अखनूर के निकट माँदा ,जम्मू -काश्मीर में तथा दक्षिणी पुरास्थल गोदावरी नदी के तट पर दाइमाबाद जिला अहमदनगर,महाराष्ट्र में स्थित है।
सिन्धु सभ्यता या सैध्ंव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी। सैंधव सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले सथलों में केवल 6 ही बड़े नगर की संज्ञा दी गई है जैसे - मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गणवारवाला, धौलावीरा, राखीगढी एवं कालीबंगन।
यह भारत की सबसे प्राचीन और प्रथम नगरीय सभ्यता है इसके पूर्व भारतीय इतिहास कार वैदिक सभ्यता को ही सबसे प्राचीन सभ्यता मानते थे। लेकिन उत्खनन के बाद यह सबसे प्राचीन सभ्यता बन गई । हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता को आधय एतिहासिक काल के अन्तर्गत रखा गया है इस सभ्यता के बारे में सर्वप्रथम 1826 ई. में हड़प्पा नामक स्थल से चाल्र्स मेंषन को कुछ महत्वपूर्ण साक्ष्य मिले थे पुनः 1853 मे हड़प्पा स्थल से ही अलेक्सेंडर कनिघंम को हड़प्पा लिपि का कुछ साक्ष्य प्राप्त हुआ
लाहौर से करांची के बीच जब रेलवे लाइन का निर्माण किया जा रहा था तब व्रिटेन बंधु जाॅन व्रिटेन विलियम व्रिटेन को कुछ आसाधारण ईट प्राप्त हुआ और सरकार ने 1875 ई. को अलेक्सेंडर कनिघम को अनुसंधान करने के लिए नियुक्त किया था।
लार्ड कर्जन ने 1904 में पुरातत्व विभाग की स्थापना की थी जिसके महानिर्देक सरजाॅन मार्षल थे 1921 में हड़प्पा नामक स्थल की खुदाई की गई थी परिणाम स्वरूप इस नगरीय के बारे हम लोगो को जानकारी प्राप्त हुई।
चलिए अब जान लेते है कि हड़प्पा सभ्यता का को किस किस नाम से जाना जाता है तथा उसका क्षेत्रफल क्या है निर्माता काल कौन है
काल निर्धारण क्या है, इसका स्वरूप कैसा था, यहाँ पे जल प्रबंधन व्यवस्था कैसी थी, सड़क प्रबंधन व्यवस्था कैसी थी ।
हड़प्पा सभ्यता का नाम सिंधु घाटी क्यो पड़ा ?
इस सभ्यता का प्रारंभिक विस्तार सिंधु नदी घाटी के क्षेत्र में हुआ था इसलिए यह नाम रख दिया गया । सरजाॅन मार्षल ने 1924 में यह नाम दिया था।
हड़प्पा सभ्यता का नाम मेलुहा सभ्यता क्यो पड़ा ?
मीसोपोटामिया (वर्तमान का इराक) में सिन्धु नदी घाटी को मेलुहा कहा गया । सिन्धु का प्राचीन नाम मेलुहा भी है इसलिए यह नाम रख दिया गया |
हड़प्पा सभ्यता
यह वर्तमान में सबसे उपयुक्त नाम है क्यों कि पुरातत्व विभाग के अनुसार किसी सभ्यता का क्षेत्र बहुत विस्तरित हो जाता है। तब उसका नाम उसी स्थल पर रख दिया जाता है जिसके बार में सबसे पहले जानकारी मिली हो ।
हड़प्पा सभ्यता क्षेत्रफल
हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्रफल प्राचीन विश्व की सभ्यताओ में बड़ी सभ्यता के रूप में जाना जाता है हड़प्पा सभ्यता का क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किलोमीटर है इसका आकार त्रिभुजाकार है |
आरण्यक क्या है ?
जंगलो में शांत जगह पर ज्ञान प्राप्त करना आरण्यक कहलाता है ।
सबसे बड़ा पुरान कौन है ?
सबसे बड़ा पुराण मतस्य पुराण है तथा सातवाहन वंष की जानकारी मतस्यपुराण से मिलती है।
हड़प्पा सभ्यता के जनक
हड़प्पा सभ्यता के जनक के बारे में विद्वानों में एक समान मत नही है भाषा विज्ञान कला एवं संस्कृति तथा पुरातात्विक शोध के आधार पर सभी विद्वानों ने अपना -अपना मत प्रस्तुत किया है जैसे -
राखलदास वनर्जी के अनुसार हड़प्पा सभ्यता का जनक कौन है ?
उत्तर - द्रविण
उपयुक्त तथ्यों के आधार पर हम की सकते है कि इस सभ्यता के जनक विदेषी नही वल्कि भारतीय थे
काल निर्धारण
जिस प्रकार हड़प्पा सभ्यता के निर्माता के बारे में विवाद है उसी तरह काल निर्धारण में भी विद्वानो में मतभेद है ।
नगरीय सभ्यता
हड़प्पा सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी इस काल में नगर निगम - नगर पालिका जैेसे प्रषासनिक इकाई थी ।
शांति मूलक स्वरूप
हड़प्पा सभ्यता षांति मूलक संस्कृति का उदाहरण है क्यों कि अब तक 2000 से अधिक स्थलों की खुदाई हुई है और किसी भी स्थल से युद्ध संबधी हथियार नही मिला है।
नगर नियोजन
हड़प्पा सभ्यता विष्व के संदर्भ में एक नगरीय सभ्यता थी अध्ययन की सुविधा के लिए निम्न लिखित -दो भागो में विभाजित किया गया है ।
1. दुर्ग 2. निचला नगर
दुर्ग में सम्पन्न वर्ग के लोग रहते थे और निचला नगर में मजदूर वर्ग के लोग रहते थे ।
तीसरे मण्डल में गायत्री मंत्र किस बेद में है ?
उत्तर - ऋग्बेद
ऋग्बेद को जो पढता है वो गोत्र कहलाता है ।
जल प्रबंधन
हड़प्पा सभ्यता के अन्तर्गत जल प्रबंधन की व्यवस्था उत्तम कोटी का था । स्वच्छ जल का आगमन और गंदे पानी के निकास के लिए नालियों का निर्माण कराया गया था। काली बंगा से उत्तम कोटी का जल प्रबंधन का साक्ष्य मिला था । वर्तमान में सर्वोतम कोटी का जल जल प्रबंधन का साक्ष्य धौलाबीरा से मिला है ।
सड़क प्रबंधन
इस सभ्यता के अन्तर्गत पूर्व में पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण एक दूसरे को समकोण पर काटती है तथा इनका निर्माण कच्ची ईटं से किया गया है । जिससे शहर शतरंज बोर्ड की तरह दिखाई देता है । मुख्य सड़को की चैड़ाई 9 मी. और गली की चैड़ाई 3 मी. थी । ईटो का अनुपात 4ः2ः1 था।
भवन निर्माण
वृद्ध स्नानागार - यह मोहन जोदड़ों से मिला है । यह 39 फिट लंबा 23 फिट चैड़ा और 8 फिट गहरा है । कुछ विद्वानों के अनुसार धार्मिक कार्य के समय एवं अधिकांष विद्वानों के अनुसार सार्वजनिक समारोह के लिए और मनोरेजन के लिए इसको खोला जाता था । इसके सहत पर वितुमिन का लेप लगा दिया जाता था जिससे यह पक्की इ्र्रटों के जैसे हो जाता था ।
अन्नागार
यह भी मोहन जोदड़ो से मिला है यह मोहन जोदड़ो की सबसे बड़ी ईमारत है।
गोढी वाड़ा
यह लोथल से प्राप्त हुआ है। इसी बंदरगाह से सर्वाधिक विदेषो के साथ व्यापारिक कार्य किया जाता था।
पुरोहित का आवास
यह भी मोहनजोदड़ों से बृहदस्नागार के समीप मिला है जिससे स्पष्ट होता है कि पुरोहित का स्थान प्रथम था।
सभा भवन
यह भी मोहनजोदड़ो से मिला है प्रशासनिक इकाई के रूप में अर्थात नगर निगम या नगर पालिका के रूप में इसको माना गया है ।
सिन्धु की सहायक नदी
1.रावी 2.व्यास 3. सतलज 4. झेलम
ट्रिक - रवि व्यास सात झेला
Explain
रवि - रावी
व्यास - व्यास
सात - सतलज
झेला - झेलम
प्रमुख स्थल
प्रारंभ में हड़प्पा सभ्यता के उत्खनंन के दौरान छः स्थलों को नगरों की संख्या दी गई थी लेकिन धौलावीरा के उत्खनन के बाद वर्तमान में सात हो गए है.
रोपड़
इसको "रूप" नगर भी बोलते है यह पंजाब में सतलज नदी के किनारे स्थित है। यज्ञदत्त शर्मा के नेतृत्व में इसका उत्खन्न कार्य संपन्न किया गया था। यहाँ से माली के शव के साथ कुत्ते के दफनाने जाने का भी प्रमाण मिला है। स्वतंत्रता के बाद रोपड़ पहला स्थल है जिसकी खुदाई की गई। स्वतंत्रता के बाद गुजरात राज्य में सबसे अधिक स्थलों की खुदाई की गई ।
समाजिक जीवन - वर्ण व्यवस्था
इस समय वर्ण व्यवस्था पूर्ण रूप से लागू नही थी। फिर भी पुरोहित योद्धा ,व्यापारी,और श्रामिक का साक्ष्यं मिला है। इस समय मात्रसतात्मक था।
खान पान - लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनो प्रकार के थे। अभी तक 9 प्रकार के फसल के बारे में जानकारी मिली है।
मुख्य प्रदार्थ गेहु और जौ था । भारत में सबसे पहले जौ का साक्ष्य मिला है।
वेश-भुषा
इस सभ्यता के निवासी सूती और उनी वस्त्र धारण करते थे। कपास का उत्पादन सर्वप्रथम हड़प्पा सभ्यता के लोगो ने किया था । मेसोपोटामिया में कपास को तथा सिन्धु एवं युनान में सिन्डोन कहा गया है।
भारत का सबसे प्राचीन उधोग सूती वस्त्र उधोग है जिसका जन्म हड़प्पा सभ्यता में हुआ था।
मनोरंजन का साधन
मनोरंजन का सबसे बड़ा प्रमुख साधन पासा खेलना था सार्वजनिक उत्सव के समय मनोरंजन के लिए बृहद स्नानागार को भी खोल दिया जाता था। इसके साथ ही पशु-पक्षियों की लड़ाई में भी मनोरंजन किया जाता था।
दाह- संस्कार
क्रब बनाकर दफना देना और आग्नि संस्कार भी किया जाता था तथा मृत शरीर को जंगल में भी फेक दिया करते थे ताकि जानवर उन्हे खा ले इसके बाद कंकाल को लाकर दफना देते थे।
आर्थिक जीवन
1. कृषि - यह क्षेत्र उस समय और वर्तमान में भी अधिक उपजाऊँ वाला क्षेत्र है।
हड़प्पा लिपी - इस सभ्यता के लिपी के बारे मे सर्वप्रथम जानकारी 1853 में हुई थी और पूर्ण जानकारी 1923 में हुई थी। यह लिपी दाये से बाये और बाये से दाये दोनो तरफ से लिखी जाती थी । इसमें कुल 400 अंक्षर है लेकिन मूल अक्षरों की संख्या 64 हैं।
धार्मिक जीवन
इस काल में लोग प्रकति एवं जीवांत रूप में देवी - देवताओं की पूजा करते थे इस समय मोहन जोदड़ो से एक मूर्ती प्राप्त हुई जिसमें चारो तरफ से एक बाघ,गेंडा,भैसा हाथी और पैरो के पास दो हिरन घिरे हुए है।
इस मूर्ती को सर (जॉन र्माशल) ने आदि शिव कहा है। भगवान शिव की प्रारम्भिक पूजा का प्रमाण हड़प्पा सभ्यता से मिलता है। हड़प्पा नामक स्थल से एक महिला के गर्भ से पौधा को निकलते हुए दिखलाया गया है।
जिसे उर्वरता की देवी कहा गया है। इसके साथ ही नदी की पूजा, वन देवी की पूजा, सूर्य की पूजा, पीपल के वृक्ष की पूजा, तुलसी की पुजा, लिंग योनी आदि की पूजा का प्रमाण मिलता है अधिकांश स्थलों में ताबीज के भी साक्ष्य प्रमाण प्राप्त हुए है.
जिससे यह पता चलता है की वहाँ के लोग अंधविश्वासी भी थे। देवी माता और जादू टोना, जंतर -मंतर तथा भूत-प्रेत पर विश्वास करते थे। पुरोहित का प्रमाण मिला है लेकिन मंदिर का प्रमाण नही मिला है।
इस मूर्ती को सर (जॉन र्माशल) ने आदि शिव कहा है। भगवान शिव की प्रारम्भिक पूजा का प्रमाण हड़प्पा सभ्यता से मिलता है। हड़प्पा नामक स्थल से एक महिला के गर्भ से पौधा को निकलते हुए दिखलाया गया है।
जिसे उर्वरता की देवी कहा गया है। इसके साथ ही नदी की पूजा, वन देवी की पूजा, सूर्य की पूजा, पीपल के वृक्ष की पूजा, तुलसी की पुजा, लिंग योनी आदि की पूजा का प्रमाण मिलता है अधिकांश स्थलों में ताबीज के भी साक्ष्य प्रमाण प्राप्त हुए है.
जिससे यह पता चलता है की वहाँ के लोग अंधविश्वासी भी थे। देवी माता और जादू टोना, जंतर -मंतर तथा भूत-प्रेत पर विश्वास करते थे। पुरोहित का प्रमाण मिला है लेकिन मंदिर का प्रमाण नही मिला है।
राजनितिक जीवन
इस समय के अन्तर्गत राजनितिक जीवन का साक्ष्य नही मिले विद्धवानो का मानना है कि नगर नियोजन एवं नगर पालिका जैसी प्रसासनिक इकाई मोहनजोदड़ो व हड़प्पा जैसे नगरों के अवशेषों को देखकर ऐसा लगता है कि नगर शासन जैसी व्यवस्था रही होगी।
पिग्गट महोदय के अनुसार - मोहन जोदड़ो और हड़प्पा इस सभ्यता की जुड़वा राजधानी थी । कुछ विद्धवानो के अनुसार इस सभ्यता की तीसरी कालीबंगा को बनाया गया था।
पतन के कारण
जिस प्रकार हड़़प्पा सभ्यता का उद्धभव अचानक नही हुआ उसी प्रकार उसका पतन भी अचानक नही हुआ। बल्कि क्रमिक रूप से धीरे-धीरे हुआ। इसके पतन के बारे में विद्धवानों में मतभेद है जिसको हमलोग निम्न लिखित रूपों में देख सकते है।
महत्वपूर्ण तथ्य - इस सभ्यता के अंतर्गत 2. इस सभ्यता के बारे में सम्पूर्ण जानकारी पुरातात्विक स्रोतों पर या उत्खन्न पर निर्भर है। इसका आकार त्रिभुजा कार है इस सभ्यता के अंतर्गत लकड़ी के पाइप का प्रयोग किया जाता था।
महत्वपूर्ण तथ्य -
1.अग्निकुण्ड लोथल एवं कालीबंगा से प्राप्त हुए है।
2.लोथल एवं सुतकोतदा - सिन्धु सभ्यता का बन्दरगाह था।
3.जोते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों का प्रायोग का साक्ष्य कालीबंगा से प्राप्त हुआ है।
4.मोहनजादड़ो से प्राप्त स्नागार संभवतः सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है।
5.सिंधु वासी मिठास के लिए शहद का प्रायोग करते थे।
6.मिट्टी के बने हल का साक्ष्य बनावली से मिला है।
7.रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले है, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है। चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से ही प्राप्त हुए है।
8.सिंधु सभ्यता के लोग यातायात के लिए दो पहियों एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी या भैसागाड़ी का उपयोग करते थे।
9.पशुओं में कूबड़ वाला साँड़ इस सभ्यता के लोगो के लिए विशेष पूजनीय था।
10. सिंधु सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किये हुए लाल रंग के बर्तन बनाते थे।
11. सिंधु घाटी के लोग तलवार से परिचित नही थे।
12. मोहनजोदड़ो से प्राप्त वृहत स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है,जिसके मध्य स्थित स्नानकुंड 11.8 मीटर लम्बा,7.01 मीटर चौड़ा है एवं 2.43 मीटर गहरा है।
13. मोहन जोदड़ो से नर्तकी की एक कांस्य की मूर्ति मिली है।
14. मनके बनाने का कारखाना लोथल एवं चन्हुदड़ो से मिला है।
15. सिंधु सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है।
16. सिंधु सभ्यता के लोगों ने नगरो तथा घरों के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई।
उम्मीद करता हूँ मेरे प्यारे दोस्तों आप ने सिंधु सभ्यता को अच्छी तरह से पढ लिया होगा | दोस्तों यदि आपको ये हमारी पोस्ट पसंद आई हो तो इसे अपने मित्रों के साथ जरूर शेयर कीजिये गा |
1 Comments
Thanks sir vistar se bataya hai ekdam saral sabdon men
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